तुम देना साथ मेरा

तुम देना साथ मेरा

Sunday 17 December 2017

फिर अंकुरित हो जाती है

पत्ते झड़ते रहते हैं
शाखाएँ भी कभी
टूट जाती है
पर वृक्ष...
खड़ा रहता है
निर्विकार..निरन्तर
उस पर 
नई शाखाएँ 
आ जाती है
नवपल्लव भी
दिखाई पड़ने लगती है
कुछ जिद्दी लताएँ
साथ ही नही छोड़ती 
वृक्ष का..
रहती है चिपकी
सूखती है और फिर
अंकुरित हो जाती है
-यशोदा
मन की उपज

12 comments:

  1. बहुत ही शानदार रचना
    बहुत बहुत बधाई

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-12-2017) को "ढकी ढोल की पोल" (चर्चा अंक-2822) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  3. बहुत ही शानदार रचना। कुछ आध्यात्मिक सी।

    शुभ संध्या ।

    ReplyDelete
  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना सोमवार 1 जनवरी 2018 के नववर्षीय विशेषांक के लिए लिंक की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  5. सुन्दर विचारणीय रचना.
    नव वर्ष की शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  6. सुन्दर विचारणीय रचना.
    नव वर्ष की शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  7. लाजवाब रचना....
    आपको और आपके परिवार को नववर्ष की शुभकामनाएं...

    ReplyDelete
  8. सुंंदर रचना..
    सच समय के साथ..
    उस पर
    नई शाखाएँ
    आ जाती है
    नवपल्लव भी

    ReplyDelete
  9. वाह!!बहुत सुंदर रचना। नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  10. पुराना जाता है तभी तो नया आता है
    नया साल आ गया, लेकिन उसे भी एक दिन जाना है
    बहुत अच्छी रचना
    नववर्ष आपके लिए मंगलमय हो!

    ReplyDelete