तुम देना साथ मेरा

तुम देना साथ मेरा

Thursday 19 July 2012

दिन सावन के...................विनोद रायसरा

दिन सावन के
तरसावन के


कौंधे बिजली
यादें उजली
अंगड़ाई ले
सांझें मचली

आते सपने
मन भावन के...

चलती पछुआ
बचते बिछिआ
सिमटे-सहमें
मन का कछुआ

हरियाए तन
सब घावन के

नदिया उमड़ी
सुधियां घुमड़ी
लागी काटन
हंसुली रखड़ी

छाये बदरा
तर-सावन के..

बरसे बदरा
रिसता कजरा
बांधूं कैसे
पहुंची गजरा

बैरी दिन हैं
दुख पावन के...

मीठे सपने
कब है अपने
चकुआ मन का
लगता जपने

कितने दिन हैं
पिऊ आवन के..


--विनोद रायसरा

Friday 13 July 2012

सावन के झूले...............राजेश राज चौहान

मेरे गांव के सावन के झूले,
कैसे उनको मेरा भोला मन भूले,,
सजना संग सजनी खिल मुसकाती,
धूले बैर भाव प्यार मन मे घुले,,
मेरे गांव के.......1

 
ना कोई उम्र का बंधन,
नीम, अम्बिया, पीपल, चंदन,,
क्या बच्चे क्या बूढ़े सब,
चहु ओर गीतो मे सावन वंदन,,
ना कोई उम्र.......2

झूले कभी अकेले कभी दुकेले,

भूले मन सब कष्टो के झमेले,,
ऊमड़-घुमड़कर काली घटाये,
अबतो हर पल सवान मस्त मजे ले,,
झूले कभी अकेले.......3

इस पार कभी तो उस पार कभी,

बावरा मन तितली-सा उडता यार अभी,,
ख़िलखिलाते खेत लहलहाती फसले,
हर्ष बिखरे सार्थक धरा का भार तभी,,
इस पार कभी तो.......4

सावन मचले रिमझिम रिमझिम,

पानी बरसे छम छम छम,,
मयुर नाचते पंख पसारे,
नीड़ों से होती ची-ची हरदम,,
सावन मचले.......5


-राजेश राज चौहान

Tuesday 10 July 2012

तुम्हारी पलकों की कोर पर...........''फाल्गुनी''

कुछ मत कहना तुम
मैं जानती हूँ
मेरे जाने के बाद
वह जो तुम्हारी पलकों की कोर पर
रुका हुआ है
चमकीला मोती
टूटकर बिखर जाएगा
गालों पर
और तुम घंटों अपनी खिड़की से
दूर आकाश को निहारोगे
समेटना चाहोगे
पानी के पारदर्शी मोती को,
देर तक बसी रहेगी
तुम्हारी आँखों में
मेरी परेशान छवि
और फिर लिखोगे तुम कोई कविता
फाड़कर फेंक देने के लिए...
जब फेंकोगे उस
उस लिखी-अनलिखी
कविता की पुर्जियाँ,
तब नहीं गिरेगी वह
ऊपर से नीचे जमीन पर
बल्कि गिरेगी
तुम्हारी मन-धरा पर
बनकर काँच की कि‍र्चियाँ...
चुभेगी देर तक तुम्हें
लॉन के गुलमोहर की नर्म पत्तियाँ।


----स्मृति जोशी ''फाल्गुनी''